नई दिल्ली। फोर्टिस हेल्थकेयर के दो फाउंडर्स में से एक शिविंदर मोहन सिंह के कंपनी में एग्जेक्युटिव पद छोड़कर जल्द ही राधा स्वामी सत्संग ब्यास (RSSB) से जुड़ सकते हैं। ब्यास एक धार्मिक गतिविधि से जुड़ा हुआ है जिसके उत्तर भारत में काफी संख्या में अनुयायी हैं। बुधवार सुबह से ही ट्विटर और सोशल मीडिया पर इस खबर की चर्चा है। ट्विटर पर सुबह #Fortis टॉप ट्रेंड पर था।
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया, ’40 साल के सिंह एक्जेक्युटिव वाइस चेयरमैन का पद छोड़कर खुद को ‘सेवा’ के लिए समर्पित करेंगे लेकिन वह बोर्ड में अपनी सीट बरकरार रखेंगे और ग्रुप की ऐंटिटीज में बड़े स्टॉक रखने वाली कंपनियों के साथ जुड़े रहेंगे।’ इसका औपचारिक ऐलान बुधवार को होने जा रही फोर्टिस हेल्थकेयर की सालाना आम बैठक (AGM) में हो सकता है।
एक अंग्रेजी बिजनेस अखबार में छपी खबर के मुताबिक, सिंह और उनके बड़े भाई मलविंदर मोहन सिंह, 43 के पास कंपनी की 70 फीसदी हिस्सेदारी है। सिंह परिवार की फोर्टिस हेल्थकेयर बीएसई में हिस्सेदारी 1.26 % है जिसकी कीमत 5,636 करोड़ रुपए है जबकि रेलिगेयर एंटरप्राइजेज में इसकी होल्डिंग की कीमत 2,693 करोड़ रुपए है जो करेंट मार्केट कैप पर बेस्ड है। वेबसाइट पर 30 हॉस्पिटल की लिस्ट दिखाने वाली फोर्टिस ने इस मामले पर कॉमेंट करने से इनकार कर दिया है।
बताया गया कि अपने फैसले पर काम करते हुए शिविंदर मोहन सिंह इस साल जुलाई में भवदीप सिंह को कंपनी फोर्टिस हेल्थकेयर के चीफ एग्जेक्युटिव ऑफिसर पर पर लेकर आए। भवदीप सिंह 2009 से 2011 तक हॉस्पिटल चेन के सीईओ थे। इसके बाद वह 26 बिलियन डॉलर के स्वामित्व वाली नीदरलैंड्स बेस्ड अहोल्ड में चले गए थे, जिसके कम से कम 800 स्टोर्स हैं।
शिविंदर सिंह की बिजनेस में एंट्री 15 साल पहले ड्यूक यूनिवर्सिटी से बिजनेस ऐडमिनिस्ट्रेशन (MBA) में मास्टर्स की डिग्री पूरी करने के बाद की थी।
सिंह ने मैथमैटिक्स में मास्टर्स की डिग्री भी हासिल कर रखी है और वह आंकड़ों में बेहद तेज माने जाते हैं लेकिन यह भावनात्मक जुड़ाव ही है जिसने उन्हें इस फैसले की तरफ खींचा। शिविंदर मोहन सिंह के करीबी बताते हैं कि उनका परिवार लंबे वक्त से राधा स्वामी सत्संग का अनुयायी रहा है। इसमें उनके दिवंगत पिता परविंदर सिंह, उनके नाना भी हैं, जो पूर्व में संगठन के नेता भी रह चुके हैं। अभी इस संगठन का नेतृत्व उनके मामा बाबा गुरविंदर सिंह संभाल रहे हैं।
शिविंदर सिंह के दादा ने 1950 में रैनबैक्सी की कमान संभाली थी, जिसकी विरासत बाद में उनके बेटे परविंदर सिंह को मिली। परविंदर के बेटे मलविंदर और शिविंदर ने रैनबैक्सी को कुछ साल पहले बेचकर हॉस्पिटल्स, टेस्ट लैबरेटरीज, फाइनैंस और अन्य सेक्टर्स में डायवर्सिफाई किया।
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