एक आदमी रात को झोपड़ी में बैठकर एक छोटे से दीये को जलाकर कोई शास्त्र पढ़ रहा था ।
आधी रात बीत गई जब वह थक गया तो फूंक मार कर उसने दीया बुझा दिया ।
लेकिन वह यह देख कर हैरान हो गया कि जब तक दीया जल रहा था, पूर्णिमा का चांद बाहर खड़ा रहा ।
लेकिन जैसे ही दीया बुझ गया तो चांद की किरणें उस कमरे में फैल गई ।
वह आदमी बहुत हैरान हुआ यह देख कर कि एक छोटे से दीए ने इतने बड़े चांद को बाहर रोेक कर रक्खा ।
इसी तरह हमने भी अपने जीवन में अहंकार के बहुत छोटे-छोटे दीए जला रखे हैं जिसके कारण परमात्मा का चांद बाहर ही खड़ा रह जाता है ।
आज मनुष्य ने स्वयं को मैं-मैं के अनेक प्रकार के बंधनों और अहंकार की बेड़ियों में बांध रखा है ।
यह सब अज्ञान अंधकार और अहंकार ही उसे परमात्मा के समीप नहीं जाने देता इसलिए परमात्मा को पाना है तो इस अंधकार से बाहर आना पड़ेगा ।
इसलिए अब हमें यही पुरुषार्थ करना है कि हमारे अंदर जितने भी प्रकार के मैं मैं के दीये जल रहे हैं , जो परमात्मा के प्रकाश की किरणों को भीतर आने से रोक रहे हैं उन्हें बुझाएं
अपने जीवन को परमात्मा के प्रकाश से भर दें ताकि जीवन में फैला अज्ञान अंधकार समाप्त हो जाए और जीवन खुशियों से भरपूर हो जाये
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