एक छोटी लड़की मंदिर में रोज प्रार्थना करने जाती थी।
उनके पास थोड़े फटे कपड़े और जुते थे।
एक दिन एक धनी #मंदिर प्रार्थना करने आया,
उसके पास सोने की करचोटी वाले जूते थे।
छोटी लड़की ने पूछा –
आप कब- कब मंदिर आते हैं।
तो उसने जवाब दिया-
साल में एक बार।
इस पर छोटी लड़की दुःखी हुई
और बोली-
हे ईश्वर ! रोज मंदिर मे प्रार्थना करने वाले
को फटे कपड़े और जूते,
और साल में जो एक बार करता है
उसके पास इतने नए कपड़े और सोने के जूते।
यह कैसा इंसाफ ?
वह यह सब सोच ही रही थी कि
एक बिना पैर वाला दिव्यांग घिसटता हुआ
आया और प्रार्थना करने लगा।
छोटी लड़की का विचार बदल गया।
उसने शिकायत के स्थान पर भगवान को धन्यवाद दिया और कहा-
मुझे पैर मिले हुए हैं , यही क्या कम है?
इसलिए कहते हैं , सम्पन्न व्यक्ति से
अपनी तुलना करने पर
मनुष्य दुःखी होता है ,
किन्तु जब दुखियों से तौलता है
तो प्रतीत होता है कि
जो मिला है, वह भी कम नहीं हैं।
उनके पास थोड़े फटे कपड़े और जुते थे।
एक दिन एक धनी #मंदिर प्रार्थना करने आया,
उसके पास सोने की करचोटी वाले जूते थे।
छोटी लड़की ने पूछा –
आप कब- कब मंदिर आते हैं।
तो उसने जवाब दिया-
साल में एक बार।
इस पर छोटी लड़की दुःखी हुई
और बोली-
हे ईश्वर ! रोज मंदिर मे प्रार्थना करने वाले
को फटे कपड़े और जूते,
और साल में जो एक बार करता है
उसके पास इतने नए कपड़े और सोने के जूते।
यह कैसा इंसाफ ?
वह यह सब सोच ही रही थी कि
एक बिना पैर वाला दिव्यांग घिसटता हुआ
आया और प्रार्थना करने लगा।
छोटी लड़की का विचार बदल गया।
उसने शिकायत के स्थान पर भगवान को धन्यवाद दिया और कहा-
मुझे पैर मिले हुए हैं , यही क्या कम है?
इसलिए कहते हैं , सम्पन्न व्यक्ति से
अपनी तुलना करने पर
मनुष्य दुःखी होता है ,
किन्तु जब दुखियों से तौलता है
तो प्रतीत होता है कि
जो मिला है, वह भी कम नहीं हैं।
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